जब शिष्य तैयार होता है, गुरु स्वयं आ जाते हैं

Photo Credit: Hidden Mantra जब शिष्य तैयार होता है, गुरु स्वयं आ जाते हैं हिमालय की विशाल मौनता में, जहाँ वायु प्राचीन सत्य की फुसफुसाहट लिए बहती है, एक शाश्वत सिद्धांत गूंजता है: जब शिष्य तैयार होता है, गुरु उसे पा लेते हैं। यह कोई काव्यात्मक कल्पना नहीं, बल्कि हिमालयी समर्पण ध्यानयोग के मार्ग में जीवंत सत्य है। यह मार्ग, जो शिवकृपानंद स्वामी द्वारा सिखाया गया है, दर्शाता है कि आध्यात्मिक जुड़ाव प्रयास से नहीं, बल्कि आत्मिक परिपक्वता से प्रकट होता है। समर्पण ध्यानयोग बाहरी खोज का मार्ग नहीं, बल्कि आंतरिक तैयारी का मार्ग है। गुरु प्रयास या खोज से नहीं आते; वे तब प्रकट होते हैं जब आत्मा की भूमि उपजाऊ होती है। जैसे बीज सही ऋतु की प्रतीक्षा करता है, वैसे ही आत्मा सही तरंग की प्रतीक्षा करती है। यह तैयारी ज्ञान या अनुशासन से नहीं, बल्कि खुलेपन से मापी जाती है। जब हृदय समर्पण के लिए तैयार होता है, गुरु की ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है। कई साधक वर्षों तक विधियाँ, ग्रंथ और दर्शनशास्त्र के पीछे दौड़ते हैं। पर हिमालयी परंपरा सिखाती है कि गुरु पुस्तकों या अनुष्ठानों में नहीं मिलते। गुरु एक तरंग...