अद्वितीय क्षणों की यात्रा: अस्तित्व में कुछ भी दोहराया नहीं जाता
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अद्वितीय क्षणों की यात्रा: अस्तित्व में कुछ भी दोहराया नहीं जाता
अस्तित्व की विशालता में कोई भी क्षण, अनुभव या श्वास कभी दोहराया नहीं जाता। हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग की शिक्षाओं में यह सत्य गहराई से प्रकट होता है—हर ध्यान एक नया अनुभव है, हर क्षण आत्मसमर्पण का नया निमंत्रण।
प्रकृति हमें यह सिखाती है: कोई दो सूर्यास्त समान नहीं होते, कोई दो पत्तियाँ एक जैसी नहीं होतीं, और हर धड़कन की तरंग अलग होती है। विचार भी, चाहे कितने भी समान लगें, नए संदर्भों में जन्म लेते हैं। ब्रह्मांड निरंतर गतिशील है — हम भी।
समर्पण ध्यानयोग में हम मन को नियंत्रित नहीं करते, बल्कि उसे देखते हैं। हर ध्यान सत्र एक नई यात्रा है। एक दिन मन अशांत होता है, दूसरे दिन शांत। लेकिन ध्यान में प्राप्त ऊर्जा कभी एक जैसी नहीं होती। यह ऊर्जा हमारे ग्रहणशीलता, कर्मों और आत्मिक स्थिति के अनुसार प्रवाहित होती है।
यह भिन्नता कोई संयोग नहीं, बल्कि दिव्य बुद्धि है। आत्मा अनुभवों के माध्यम से विकसित होती है, जो उसकी यात्रा के लिए विशेष रूप से निर्मित होते हैं। दोहराव केवल मन का भ्रम है — आत्मा जानती है कि हर क्षण पवित्र और नया है।
स्वामी शिवकृपानंदजी की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि आत्मसमर्पण निष्क्रियता नहीं, बल्कि गुरु तत्व और ब्रह्मांडीय प्रवाह में सक्रिय विश्वास है। जब हम ध्यान में पूर्ण समर्पण करते हैं, तो हम परिणामों का पीछा करना छोड़ देते हैं और जीवन को दिव्य आयोजन के रूप में देखना शुरू करते हैं।
यह समझ हमें मुक्त करती है। हम अतीत से चिपकना या भविष्य से डरना छोड़ देते हैं। हम वर्तमान में जीते हैं —जाग्रत, जीवंत और रहस्य के लिए खुले।
अगली बार जब आप ध्यान करें, याद रखें: यह क्षण पहले कभी नहीं आया था और फिर कभी नहीं आएगा। इसे पूर्ण रूप से ग्रहण करें। इसमें पूरी तरह समर्पित हो जाएँ। यही अस्तित्व का शाश्वत नृत्य है — जहाँ हर कदम नया है और हर श्वास एक आशीर्वाद।
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