पुराने संस्कारों को छोड़ना

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 पुराने संस्कारों को छोड़ना 

पुराने संस्कारों को छोड़ देना, हमारे आध्यात्मिक मार्ग पर एक अत्यंत गहन कदम है। ये संस्कार, जो अक्सर हमारे अवचेतन मन में गहराई से बसे होते हैं, हमारे पूर्व अनुभवों, मान्यताओं, संस्कारों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। ये हमारी दुनिया को देखने की दृष्टि, प्रतिक्रिया देने के तरीके और जीवन जीने के ढंग को आकार देते हैं। लेकिन हिमालयीय समर्पण ध्यानयोग और स्वामी शिवकृपानंदजी की शिक्षाओं की सुंदरता इसी में है कि वे हमें वर्तमान क्षण में लौटने की सरल विधि सिखाते हैं—हमें अतीत के बोझ और भविष्य की चिंता से मुक्त करते हुए।

स्वामीजी बार-बार बताते हैं कि सच्ची आध्यात्मिक प्रगति केवल यहीं और अभी के क्षण में ही संभव है। जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो जैसे ही हम अपनी अपना चित्त सहस्रार पर केंद्रित करते हैं और भीतर की ओर मुड़ते हैं, हम अपने विचारों को साक्षी भाव से देखना शुरू करते हैं—वे विचार जो अक्सर बिना सोचे-समझे चलते रहते हैं। ये विचार अक्सर पुराने अनुभवों या जड़ हो चुके मानसिक ढाँचों से उत्पन्न होते हैं। कुछ संस्कार भय, संदेह, असुरक्षा या नियंत्रण की प्रवृत्ति से भरे हो सकते हैं। परंतु समर्पण ध्यानयोग का अभ्यास हमें यह बोध कराता है कि ये हमारी सच्ची पहचान नहीं हैं। हम विचार नहीं हैं, हम भावनाएँ नहीं हैं—हम शुद्ध, शांत, दिव्य चेतना हैं जो आत्मा के रूप मे हमारे भीतर विद्यमान है।

इन पुराने संस्कारों से मुक्त होने का पहला कदम है—जागरूकता। ध्यान के अभ्यास से हम इन मानसिक ढाँचों को देख पाते हैं, और जब हम उन्हें देखना शुरू करते हैं, तो उनका हम पर नियंत्रण कम होने लगता है। स्वामीजी प्रेमपूर्वक कहते हैं, "आकाश बन जाओ। विचारों के बादलों को गुजरने दो। उन्हें पकड़ो मत।"

समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से मिलने वाला सबसे बड़ा उपहार है—अतीत से स्वतंत्रता। हमें यादों, पहचान या भूमिकाओं का बोझ उठाने की आवश्यकता नहीं है। जब हम अपने भीतर हमारे आत्मा से जुड़ते हैं, तो हम प्रतिक्रियाओं की जगह केंद्रित अवस्था में जीने लगते हैं। स्वामीजी हमें सिखाते हैं कि अपने अतीत को गुरु शक्ति को समर्पित कर दो, ताकि वह उसे रूपांतरित कर सके।

छोड़ना केवल अतीत का नहीं, बल्कि भविष्य की चिंता से भी मुक्ति है। जब हम लगातार भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं—योजनाएँ बनाते, चिंता करते—तो मानसिक तनाव बढ़ता है। लेकिन जब हम वर्तमान में टिकते हैं, तो हमें प्राकृतिक रूप से स्वतंत्रता का अनुभव होता है। यह कोई पलायन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक परिपक्वता है—यह विश्वास कि यदि हम इस क्षण में संतुलित हैं, तो अगला कदम स्वतः स्पष्ट होगा।

रूपांतरण तब होता है जब हम अपने पुराने "स्वरूप" से चिपके रहना छोड़ते हैं। अतीत एक छाया है, भविष्य एक सपना। स्वामीजी का जीवन और उनका संदेश हमें दिखाता है कि हम इसी क्षण में मुक्त हो सकते हैं। जागरूकता के माध्यम से हम अपनी पुरानी परतें सहजता से छोड़ सकते हैं।

पुराने संस्कारों को छोड़ना यह नहीं है कि हम कुछ नए बनते हैं, बल्कि यह है कि हम वही बनते हैं जो हम वास्तव में हैं—संस्कारों से परे, भय से परे, कहानियों से परे। ध्यान की शांति में हम बार-बार इस सत्य को याद करते हैं। वर्तमान क्षण में अपार शक्ति है—यही मुक्ति का द्वार है।

समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से हमें खुद को बदलने का प्रयास नहीं करना होता—हमें बस समर्पण करना होता है। जब हम नियमित ध्यान में बैठते हैं, विचारों को पकड़ते नहीं, भावनाओं को रोकते नहीं, तो हम अपने भीतर की दिव्यता को सामने आने देते हैं। और इसी में एक नया जीवन जन्म लेता है—हल्का, स्वतंत्र और आत्मस्वरूप से जुड़ा हुआ।


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