भीतर का दीप जलाएँ: समर्पण ध्यानयोग और दिवाली

 

Photo Credit: in.Pinterest.in

भीतर का दीप जलाएँ: समर्पण ध्यानयोग और दिवाली

दिवाली केवल दीपों, मिठाइयों और पटाखों का उत्सव नहीं हैयह आत्मा के प्रकाश को जगाने का पर्व है। हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग के अनुसार, सच्चा दीपक हमारे भीतर जलता है।

जैसे हम दिवाली से पहले अपने घरों की सफाई करते हैं, वैसे ही साधक को अपने भीतर की सफाई करनी होती हैअहंकार, भय और अज्ञान के धूल को हटाकर। तभी आत्मप्रकाश प्रकट होता है।

दीपक की लौ चेतना की जागृति का प्रतीक है। स्वामी शिवकृपानंदजी कहते हैं कि जब हम सच्चे समर्पण से ध्यान करते हैं, तो हम एक दीपक की तरह हो जाते हैंस्थिर, मौन और भीतर से प्रकाशित। गुरु तत्व की कृपा अंधकार को दूर करती है।

दिवाली राम के अयोध्या लौटने का पर्व हैधर्म और सत्य की वापसी। समर्पण ध्यानयोग में यह आत्मा की अपने स्रोत की ओर वापसी का प्रतीक है। ध्यान वह मार्ग है जो आत्मा को घर लौटने में सहायक बनता है।

बाहरी पटाखों की चमक क्षणिक होती है, लेकिन आत्मा का प्रकाश शाश्वत है। यह अभ्यास, मौन और समर्पण से गहराता है। दिवाली हमें याद दिलाती है कि हमें भीतर बैठकर गुरु तत्व से जुड़ना है।

स्वामीजी सिखाते हैं कि जब एक आत्मा प्रकाशित होती है, तो वह अनेक आत्माओं को प्रकाशित कर सकती है। जैसे एक दीपक सैकड़ों दीपों को जला सकता है, वैसे ही एक आत्मजागृत व्यक्ति समाज में प्रकाश फैला सकता है।

इसलिए इस दिवाली, जब आप अपने घर को सजाएँ और दीप जलाएँ, तो कुछ पल मौन में बैठें। आँखें बंद करें। श्वास लें। और स्वयं से पूछें: क्या मेरा भीतर का दीप जल रहा है? यदि नहीं, तो समर्पण करें। यदि हाँ, तो वह प्रकाश बाँटें।

क्योंकि सबसे उज्ज्वल दिवाली वह नहीं जो बाहर होती हैबल्कि वह जो भीतर घटती है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ध्यान - मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख द्वार

गुरु कृपा जीवन का स्नेहक है

पुराने संस्कारों को छोड़ना