जब समय आता है, सतगुरु स्वयं खोज लेते हैं

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जब समय आता है, सतगुरु स्वयं खोज लेते हैं
आध्यात्मिक यात्रा को एक रहस्यमयी कृपा संचालित करती है—जो तर्क, प्रयास और इच्छा से परे होती है। हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग की दृष्टि में यह कृपा सतगुरु के आगमन में प्रकट होती है। और सबसे गहन सत्य यह है: जब समय आता है, सतगुरु स्वयं आपको खोज लेते हैं—चाहे आप आध्यात्मिकता की खोज में हों या नहीं।
कई लोग अनायास ही आध्यात्मिक मार्ग पर आ जाते हैं। एक पुस्तक हाथ लगती है, कोई मित्र ध्यान का उल्लेख करता है, या कोई वीडियो अचानक सामने आता है। ये संयोग नहीं हैं—ये दिव्य आयोजन हैं। सतगुरु का आगमन तब होता है जब आत्मा परिपक्व हो जाती है। भीतर की पुकार सुन ली जाती है।
समर्पण ध्यानयोग में स्वामी शिवकृपानंदजी सिखाते हैं कि सतगुरु केवल शिक्षक नहीं होते—वे गुरु तत्व के साक्षात स्वरूप होते हैं। वे कोई आग्रह नहीं करते, कोई बंधन नहीं देते। वे केवल मौन उपस्थिति से जागृति लाते हैं।
अक्सर साधक को यह भी नहीं पता होता कि वह खोज में है। जीवन सामान्य चल रहा होता है—या संघर्षों से भरा होता है। लेकिन भीतर कहीं एक मौन तड़प होती है। जब वह तड़प गहराई तक पहुँचती है, तो सतगुरु प्रकट होते हैं—प्रयास से नहीं, कृपा से।
यह मिलन हमेशा नाटकीय नहीं होता। यह कोमल, सूक्ष्म और कभी-कभी अनजाना होता है। लेकिन एक बार संबंध स्थापित हो जाए, तो भीतर कुछ बदलने लगता है। मन शांत होने लगता है, हृदय कोमल होता है, आत्मा स्वयं को देखा हुआ महसूस करती है।
समर्पण ध्यानयोग में यह संबंध ध्यान के माध्यम से पोषित होता है—जहाँ साधक मौन में बैठता है और गुरु तत्व के चरणों में समर्पित होता है।
सतगुरु हमें नए विश्वास नहीं देते—वे पुराने भ्रमों को मिटाते हैं। वे हमें ज्ञान से नहीं भरते—बल्कि आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। उनकी उपस्थिति सूर्य के समान होती है—जो फूल को बलपूर्वक नहीं खिलाता, बल्कि उसे सहज रूप से खिलने की स्थिति देता है।
आप धार्मिक हों, नास्तिक हों, जिज्ञासु हों या उदासीन—सतगुरु तब आते हैं जब आत्मा तैयार होती है। उन्हें मंदिरों या ग्रंथों में खोजने की आवश्यकता नहीं। केवल हृदय की शुद्धता चाहिए। समर्पण ध्यानयोग में यही शुद्धता ही कुंजी है।
यदि आप मौन, स्थिरता या गहराई की ओर आकर्षित हो रहे हैं—तो उस आकर्षण पर विश्वास करें। यही यात्रा की शुरुआत है। और यदि आप सतगुरु से मिल चुके हैं, तो उस मिलन को संजोएँ। क्योंकि वह मिलन केवल एक क्षण नहीं—बल्कि जीवनभर की जागृति की शुरुआत है। सच्चाई यह है कि हम सतगुरु को नहीं खोजते। वे हमें खोज लेते हैं। और जब वे आते हैं, तो वास्तविक यात्रा प्रारंभ होती है।
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