गुरुकार्य में सेवा-भाव: आत्मसमर्पण की अभिव्यक्ति
गुरुकार्य में सेवा-भाव: आत्मसमर्पण की अभिव्यक्ति
आध्यात्मिक मार्ग में सेवा-भाव से अधिक परिवर्तनकारी कुछ नहीं होता। हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग में सेवा केवल कर्म नहीं, बल्कि एक पवित्र अर्पण है—अहंकार को मिटाने और गुरु तत्व से जुड़ने का माध्यम। जब सेवा शुद्धता और समर्पण से की जाती है, तो वह आत्मिक विकास का शक्तिशाली साधन बन जाती है।
स्वामी शिवकृपानंदजी सिखाते हैं कि गुरुकार्य केवल उपदेशों तक सीमित नहीं होता—यह एक जीवंत ऊर्जा है जो मानवता को ऊपर उठाती है। इस कार्य में सहभागी होना कोई कर्तव्य नहीं, बल्कि सौभाग्य है। और इसके लिए केवल एक सच्चे हृदय की आवश्यकता होती है। चाहे कोई फर्श साफ कर रहा हो, कुर्सियाँ लगा रहा हो, प्रसाद बाँट रहा हो या प्रेम से स्वागत कर रहा हो—हर सेवा आत्मा को जागृत करने की क्षमता रखती है।
समर्पण ध्यानयोग में सेवा कभी लेन-देन नहीं होती। यह न पहचान के लिए की जाती है, न पुरस्कार के लिए। यह “मैं” को मिटाने के लिए की जाती है। जब हम बिना अपेक्षा के सेवा करते हैं, तो हम खाली पात्र बन जाते हैं जिनमें गुरु की ऊर्जा प्रवाहित हो सकती है। यह खालीपन कमजोरी नहीं, बल्कि तैयारी है।
अक्सर साधक पूछते हैं कि ध्यान कैसे गहरा करें या गुरु तत्व से कैसे जुड़ें। एक उत्तर है—सेवा। जब हम भक्ति से सेवा करते हैं, तो हमारा सूक्ष्म शरीर अधिक ग्रहणशील बनता है। मन शांत होता है, हृदय खुलता है, और आत्मा चमकने लगती है। सेवा भीतर की भूमि को शुद्ध करती है, जिससे कृपा सहज रूप से उतरती है।
सतगुरु की उपस्थिति में सबसे छोटा कार्य भी पवित्र बन जाता है। किसी साधक को दिया गया मुस्कान, प्रेम से दी गई चाय, या ध्यानपूर्वक सुना गया एक क्षण—ये सामान्य क्रियाएँ नहीं हैं। ये आत्मा की गुरुकार्य से जुड़ने की अभिव्यक्तियाँ हैं।
सेवा विनम्रता भी सिखाती है। यह याद दिलाती है कि हम कर्ता नहीं, केवल माध्यम हैं। गुरुकार्य हमारे माध्यम से प्रवाहित होता है—हमारी योग्यता से नहीं, बल्कि हमारी तत्परता से। यही सेवा-भाव का सार है।
समर्पण ध्यानयोग में सेवा ध्यान की क्रियात्मक अभिव्यक्ति है। यह हाथों और पैरों से प्रकट हुआ ध्यान है। यह आत्मा का कृतज्ञता से झुकना है और कहना है, “मुझे सेवा करने दो।” और इसी सेवा में आत्मा विलीन होने लगती है, और भीतर का प्रकाश प्रकट होता है।
तो यदि कभी मार्ग से दूर महसूस करें, सेवा से शुरुआत करें। अपना समय, ऊर्जा और उपस्थिति अर्पित करें। दिखाने के लिए नहीं, समर्पण के लिए। क्योंकि गुरुकार्य में जो हाथ सेवा करते हैं, वही हृदय जागृति की ओर बढ़ते हैं।

 
 
 
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