कुछ भी शुद्ध या अशुद्ध नहीं है

फोटो का श्रेय: पिनटेरेस्ट कुछ भी शुद्ध या अशुद्ध नहीं है सच्चे ज्ञान की दृष्टि में इस धरती पर कुछ भी शुद्ध या अशुद्ध नहीं है। ये भेदभाव मानव मन की रचनाएँ हैं, जो धारणाओं, संस्कारों और द्वैत की सीमित समझ पर आधारित हैं। हिमालयीय समर्पण ध्यानयोग और पूज्य शिवकृपानंद स्वामीजी की शिक्षाओं के प्रकाश में हमें यह सिखाया जाता है कि धरती अपने मूल स्वरूप में पूरी तरह से निष्पक्ष है—न पवित्र, न अपवित्र। वह बस है । वह पूर्ण संतुलन और स्वीकृति की अवस्था में विद्यमान है, बिना किसी भेदभाव के समस्त जीवन को स्वयं को अर्पित करती है। जब हम प्रकृति को गहराई से देखते हैं, तो पाते हैं कि सब कुछ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में है। नदियाँ उस मिट्टी का न्याय नहीं करतीं जिनसे वे होकर बहती हैं; वृक्ष उन प्राणियों में भेद नहीं करते जो उनकी छाया में आश्रय लेते हैं। धरती सुगंधित पुष्प और सड़ती हुई पत्तियों को एक समान प्रेम से अपनाती है। शुद्धता और अशुद्धता मानव निर्मित लेबल हैं, जो जीवन में व्याप्त एकता और दिव्यता पर पर्दा डालते हैं। समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से ध्यान करने से हम इन मानसिक चश्मों को ह...