नश्वर होने का बोध

 

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                            नश्वर होने का बोध

जीवन का सबसे बड़ा सत्य यह है कि हम सभी नश्वर हैं। इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक दिन इसे छोड़कर चला जाएगा। लेकिन दुर्भाग्यवश, हम इस सच्चाई को अक्सर भूल जाते हैं और अपने जीवन को ऐसे जीते हैं जैसे हम अनंत काल तक यहाँ रहने वाले हैं। स्वामी शिवकृपानंद जी द्वारा सिखाए गए हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से हमें यह बोध होता है कि यह जीवन क्षणभंगुर है और इसका उद्देश्य आत्मिक उन्नति है।

जब हम अपनी नश्वरता को स्वीकार करते हैं, तब हमारा दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल जाता है। हम अपने अहंकार, इच्छाओं और सांसारिक बंधनों से मुक्त होने लगते हैं। हमें यह समझ में आता है कि जो भी हम अपने जीवन में संचित कर रहे हैं, वह केवल एक समय तक हमारे साथ रहेगा। यह बोध हमें अपने कर्मों को सुधारने और अपने जीवन को अधिक सार्थक बनाने की प्रेरणा देता है।

ध्यान की साधना हमें इस सत्य के और निकट लाती है। जब हम गहरी साधना में उतरते हैं, तब हमें अपने अस्तित्व का वास्तविक अनुभव होता है। हम यह अनुभव करते हैं कि हम केवल यह शरीर नहीं हैं, बल्कि एक शाश्वत चेतना हैं जो केवल कुछ समय के लिए इस भौतिक संसार में आई है। यह जागरूकता हमारे अंदर एक अद्भुत शांति और संतोष लाती है, जिससे हम जीवन को अधिक धैर्य और समर्पण के साथ जीने लगते हैं।

हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग हमें सिखाता है कि हमें हर क्षण को पूर्ण जागरूकता के साथ जीना चाहिए। जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हमारा जीवन सीमित है, तब हम हर छोटी-बड़ी बात की कद्र करने लगते हैं। हम अपने रिश्तों को अधिक प्रेम और करुणा के साथ निभाते हैं, अपने कर्मों को अधिक सच्चाई और ईमानदारी से करते हैं और अपने समय का सदुपयोग आत्मिक उन्नति के लिए करते हैं।

स्वामी शिवकृपानंद जी कहते हैं कि मृत्यु को भय के रूप में देखने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे जीवन का एक स्वाभाविक चरण समझना चाहिए। जब हम ध्यान में उतरते हैं, तब हमें यह अनुभव होता है कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अनंत और अजर-अमर है। यह अनुभूति हमें मृत्यु के भय से मुक्त करती है और हमें अपने जीवन को अधिक समर्पण और कृतज्ञता के साथ जीने की प्रेरणा देती है।

इस नश्वरता का बोध हमें अपने कर्मों के प्रति भी अधिक जागरूक बनाता है। जब हम समझते हैं कि हमारे पास सीमित समय है, तब हम अपने हर कार्य को ध्यान और समझदारी के साथ करने लगते हैं। हम अपने जीवन को केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं में नहीं गवाँते, बल्कि इसे आत्मिक उन्नति और सेवा में लगाते हैं।

हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से हमें यह भी पता चलता है कि हमारी मृत्यु का समय अज्ञात है, इसलिए हमें हर क्षण को ध्यान, प्रेम और करुणा के साथ जीना चाहिए। यह साधना हमें अपने अंदर स्थिरता और संतुलन लाने में मदद करती है, जिससे हम जीवन के हर उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार कर पाते हैं।

अंततः, जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख-संपत्ति अर्जित करना नहीं है, बल्कि आत्मा की उन्नति करना है। जब हम अपनी नश्वरता को गहराई से समझ लेते हैं, तब हमें यह एहसास होता है कि हमारा असली कार्य स्वयं को जानना और परमात्मा से जुड़ना है। स्वामी शिवकृपानंद जी का हिमालयीन समर्पण ध्यानयोग इस यात्रा में हमारा सबसे सशक्त मार्गदर्शक है, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से परिचित कराता है और हमें सच्चे शांति और आनंद की ओर ले जाता है।

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