जीवन का मूल स्रोत हमारे ही भीतर है

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 जीवन का मूल स्रोत हमारे ही भीतर है

जीवन का स्रोत हमारे भीतर ही है। यह कोई बाहरी वस्तु नहीं है जिसे हमें बाहर जाकर खोजना है। यह न दौलत में है, न पद-प्रतिष्ठा में और न ही किसी बाहरी उपलब्धि में। जो शक्ति हमारे शरीर को गति देती है, विचारों को जन्म देती है, और हमारे हृदय को प्रेम से भरती है — वह स्रोत हमारे ही भीतर स्थित है। यह वही गूढ़ सत्य है जिसे हिमालयन समर्पण ध्यानयोग के परम पूज्य शिवकृपानंद स्वामीजी हमें सिखाते हैं।

जब हम समर्पण ध्यानयोग की साधना में मौन में बैठते हैं, तो हम धीरे-धीरे इस सूक्ष्म उपस्थिति को अनुभव करने लगते हैं। यह साधना प्रयास की नहीं, समर्पण की है। इसमें साधक अपने आप को गुरुतत्त्व के चरणों में समर्पित कर देता है और भीतर की यात्रा आरंभ होती है। स्वामीजी हमें सिखाते हैं कि हम ईश्वर से अलग नहीं हैं, बल्कि उसी की अभिव्यक्ति हैं।

हम जीवन में सुख और शांति को बाहरी दुनिया में ढूँढते हैं, पर वह सदा अलभ्य ही रहती है। यह अधूरी अनुभूति, यह अंदर की प्यास — यह कोई कमी नहीं है, बल्कि आत्मा की पुकार है — अपने मूल की ओर लौटने की। स्वामीजी कहते हैं कि मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है — भीतर की ओर जाना, और यह जानना कि परमात्मा हमारे भीतर ही है।

समर्पण ध्यानयोग की साधना धीरे-धीरे हमारे भीतर जमी परतों को हटाती है। जैसे बादल सूरज को ढँक लेते हैं, वैसे ही हमारे विचार, भय, और इच्छाएँ आत्मा के प्रकाश को ढँक देती हैं। पर सूर्य कभी बुझता नहीं। आत्मा का प्रकाश भी हमेशा हमारे भीतर रहता है।

जैसे-जैसे साधना गहराती है, वैसी-वैसी हमारी अलगाव की भावना समाप्त होने लगती है। हम स्वयं को सम्पूर्ण सृष्टि से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। यह आत्मबोध का आरंभ है। यह कोई नया बनना नहीं है, बल्कि अपने असली स्वरूप को याद करना है।

स्वामीजी का संदेश सरल और प्रेमपूर्ण है: “बस बैठो। बस रहो।” जब हम पूर्ण समर्पण में होते हैं, तो भीतर कुछ दिव्य प्रकट होता है। जीवन में हर पल दिव्यता से भर जाता है। एक सामान्य श्वास, एक स्नेहिल शब्द, या एक शांत सूर्यास्त — सब कुछ पूजनीय हो जाता है।

जब हम इस आत्मस्रोत से जुड़ते हैं, तो जीवन में एक गहन शांति का अनुभव होता है। यह कोई सैद्धांतिक ज्ञान नहीं, बल्कि जीवंत अनुभूति है। और एक बार जब हम इस स्रोत को छू लेते हैं, तब से हमारा जीवन वैसा नहीं रहता। हम घर लौट आते हैं — अपने सच्चे स्वरूप में।


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